“मेरे अधरों पर हो अन्तिम वस्तु न तुलसी-दल, प्याला, मेरी जिह्वा पर हो अन्तिम वस्तु न गंगाजल, हाला, मेरे शव के पीछे चलने- वालो, याद इसे रखना— ‘राम नाम है सत्य’ न कहना, कहना ‘सच्ची मधुशाला”
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मधुशाला, हर रात देश भर में शानदार मेजबानी करने वाली एक रसीली शराब की कविता है। हरिवंश राय बच्चन जी की इस अद्वितीय कविता में शराब को एक मेटाफ़ॉर के रूप में पेश किया गया है, जो जीवन के मार्गदर्शक के रूप में दिखाई देती है। इस आलोचनात्मक, प्रेरक और विचारपूर्ण काव्य के माध्यम से, हम इस लेख में ‘मधुशाला’ के महत्वपूर्ण पहलूओं, उद्देश्य और उसकी भूमिका के बारे में गहराई से विचार करेंगे।
मधुशाला की उत्पत्ति
मधुशाला की उत्पत्ति हमारे आदिकाव्य “रामचरितमानस” के काव्यभाग से जुड़ी हुई है। हरिवंश राय बच्चन जी को ‘जयदेव की गीत गोविंद’ पठने के दौरान उनके मन में मधुशाला जैसी एक कविता की ख्याल आई। यह ख्याल उन्हें इतना प्रभावित किया कि वे तत्कालीन संकलन ‘आत्मसंग्राम’ में ‘मधुशाला’ नामक कविता का प्रकाशन करने जा रहे थे। लेकिन समय ना मिलने के कारण यह काव्यसंग्रह प्रकाशित नहीं हो सका। उन्होंने यह कविता उस समय अपनी व्यक्तिगत नोटबुक में रखी और इसे बाद में अपनी काव्यसंग्रह “मधुशाला” में शामिल किया।
मधुशाला: एक अद्वितीय शैली
मधुशाला एक अद्वितीय काव्यशैली में लिखी गई है। इसमें साधारण भाषा के साथ उच्च काव्यात्मकता को मिश्रित किया गया है। बच्चन जी ने इस कविता में अपनी प्रतिभा के जरिए एक अद्वितीय छाप छोड़ी है। वे अलंकार, छंद, व्यंजन, ताल और रंग का समर्थन करते हैं, जिससे उनकी कविता में एक अद्वितीय गहराई और भावात्मकता की उपस्थिति होती है।
गीत-गोविंद और मधुशाला
‘जयदेव की गीत गोविंद’ के पाठन से ही बच्चन जी के मन में मधुशाला की ख्याल आई थी। इस ग्रंथ के अंतर्गत जयदेव जी ने प्रेम की अनुभूति को मधुर कविताओं के माध्यम से व्यक्त किया है। इसके प्रभाव से प्रभावित होकर बच्चन जी ने मधुशाला को लिखा है, जो रसीली शराब के माध्यम से प्रेम के अनुभव को व्यक्त करती है। दोनों ग्रंथों में प्रेम और रस की महत्ता को महसूस करने का संदेश दिया गया है।
अद्वितीयता की पहचान
मधुशाला अपनी अद्वितीयता के लिए जानी जाती है। इसमें कविता के हर पंक्ति में रस की एक नई पहचान है। यह एक शराबी के मनोभाव को दिखाती है, जिसे सामान्य भाषा में व्यक्त करने की कला बच्चन जी को विशेष रूप से आती है। इसका प्रभाव उस शराबी के मन के ऊब और विचारों को अच्छी तरह से प्रदर्शित करता है और पठने वाले को भी एक गहरा संवाद अनुभव कराता है।
साहित्यिक अर्थात्मकता
मधुशाला एक साहित्यिक अर्थात्मक काव्य है जो व्यापक रूप से पठने वाले को विचार करने पर मजबूर करता है। इसके अलावा, इसमें कई सामाजिक और राष्ट्रीय विषयों को छूने का प्रयास किया गया है। विषय जैसे कि प्रेम, जीवन, मौत, स्वतंत्रता, समाज, राष्ट्रीयता, धर्म और न्याय आदि को इस काव्य में व्यक्त किया गया है। इससे यह साफ होता है कि मधुशाला एक साहित्यिक और विचारपूर्ण काव्य है जो अपनी पाठकों को गहरे सोच के साथ रसीली शराब का आनंद देता है।
मधुशाला की विशेषताएं
मधुशाला की कविताओं की एक विशेषता यह है कि वे बहुत संक्षेप्त होती हैं, लेकिन उनमें एक गहरा अर्थ समाहित होता है। प्रत्येक पंक्ति एक विचार को प्रकट करती है और पूरे काव्य में एक समूह का निर्माण करती है। यह बच्चन जी की कविता की अद्वितीयता को दर्शाती है, जहां एक शब्द या एक पंक्ति पूरे अर्थ को प्रकट करती है।
मधुशाला: एक सामाजिक संदेश
मधुशाला एक सामाजिक संदेश रखती है, जो स्वतंत्रता, समाज, न्याय और धर्म जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर गहरे सोच को प्रोत्साहित करता है। इसके माध्यम से बच्चन जी ने अपने पाठकों को एक सोचने की प्रेरणा दी है और उन्हें संघर्ष, स्वतंत्रता और जीवन के महत्व के प्रतीकों के साथ परिचित किया है।
मधुशाला एक ऐसी कविता है जो अपनी अद्वितीय कविता शैली और सामाजिक संदेश के कारण मशहूर हुई है। इस कविता के माध्यम से हम प्रेम, जीवन, स्वतंत्रता और अन्य महत्वपूर्ण विषयों को गहराई से विचार कर सकते हैं। मधुशाला एक रसीली शराब की तरह हमारे जीवन को बहार देती है और हमें एक संवेदनशील और सोचने वाले पाठक के रूप में परिवर्तित करती है।
हरिवंश राय बच्चन की ‘मधुशाला’ से 10 चुनिंदा कविता:
“मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवाला, ‘किस पथ से जाऊँ’ असमंजस में है वह भोलाभाला; अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ… ‘राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला”
“याद न आए दुखमय जीवन इससे पी लेता हाला, जग चिंताओं से रहने को मुक्त, उठा लेता प्याला, शौक, साध के और स्वाद के हेतु पिया जग करता है, पर मैं वह रोगी हूँ जिसकी एक दवा है मधुशाला”
“जो हाला मैं चाह रहा था, वह न मिली मुझको हाला, जो प्याला मैं माँग रहा था, वह न मिला मुझको प्याला, जिस साक़ी के पीछे मैं था दीवाना, न मिला साक़ी, जिसके पीछे मैं था पागल, हा, न मिली वह मधुशाला”
“हाथों में आने-आने में, हाय, फिसल जाता प्याला, अधरों पर आने-आने में, हाय, ढलक जाती हाला; दुनिय वालो, आकर मेरी किस्मत की खूबी देखो रह-रह जाती है बस मुझको मिलते-मिलते मधुशाला”
“लाल सुरा की धार लपट-सी कह न इसे देना ज्वाला, फेनिल मदिरा है, मत इसको कह देना उर का छाला, दर्द नशा है इस मदिरा का विगत स्मृतियाँ साक़ी हैं; पीड़ा में आनन्द जिसे हो, आए मेरी मधुशाला |”
“बने पुजारी प्रेमी साक़ी, गंगाजल पावन हाला, रहे फेरता अविरल गति से मधु के प्यालों की माला, ‘और लिये जा, और पिए जा’— इसी मंत्र का जाप करे, मैं शिव की प्रतिमा बन बैठूँ | मंदिर हो यह मधुशाला”
“बिना पिये जो मधुशाला को बुरा कहे, वह मतवाला, पी लेने पर तो उसके मुँह पर पड़ जाएगा ताला; दास-द्रोहियों दोनों में है जीत सुरा की, प्याले की, विश्वविजयिनी बनकर जग में आ ई मेरी मधुशाला”
“हरा-भरा रहता मदिरालय, जग पर पड़ जाए पाला, वहाँ मुहर्रम का तम छाए, यहाँ होलिका की ज्वाला; स्वर्ग लोक से सीधी उतरी वसुधा पर, दुख क्या जाने; पढ़े मर्सिया दुनिया सारी, ईद मानती मधुशाला”
“दुतकारा मस्जिद ने मुझको कहकर है पीनेवाला, ठुकराया ठाकुरद्वारे ने देख हथेली पर प्याला, कहाँ ठिकाना मिलता जग में भला अभागे काफिर को शरणस्थल बनकर न मुझे यदि अपना लेती मधुशाला”
“सजें न मस्जिद और नमाज़ी कहता है अल्लाताला, सजधजकर, पर, साक़ी आता, बन ठनकर, पीनेवाला, शेख, कहाँ तुलना हो सकती मस्जिद की मदिरालय से चिर-विधवा है मस्जिद तेरी, सदा-सुहागिन मधुशाला !” ―